कड़ी मेहनत ही भारतीय मैनेजरों की सफलता का राज है, पूरी दुनिया इस बात को मान चुकी है

किताब में भारतीय मैनेजरों की दुनिया में पूछ की वजह बताई गई 
सुंदर पिचाई
सुंदर पिचाई, सत्या नडेला और इंद्रा नूयी  समानता है... अव्वल तो यह की वे सभी भारतीय हैं और इसके साथ ही इन्होंने अमेरिकी कॉरपोरेट वर्ल्ड शीर्ष पदों पर अपनी जगह बनाई है। पर इसके पीछे वजह क्या है। ऐसे ही कुछ सवालों व अन्य भारतीय मैनेजरों की सफलता की कहानी द मेड इन इंडिया मैनेजर शीर्षक से लिखी गई है। इस किताब में दो बिजनेस एक्सपर्ट्स आर गोपालकृष्णन और रंजन बेनर्जी ने लेखन काम किया है।
किताब में उन वजह के बारे में विस्तार से है, जिनसे भारतीय प्रबंधन सोच और व्यवहार को सॉफ्ट पावर के रूप में पहचान बनाने में मदद मिली है। एक्जीक्यूटिव रिसर्च फर्म एगॉन जेनडर की स्टडी में पता चला है की अमेरिका एसएंडपी 500 कंपनियों में अन्य देशों की तुलना में से ज्यादा भारतीय  सीईओ की संख्या किताब में इसका जिक्र भी किया गया है। इसमें बताया है सैन साल्वाडोर हो या मिस्त्र में गरीबी भारत जितनी ही है।
इंद्रा नूयी  
अच्छे जीवन स्तर के लिए उतना ही संघर्ष है पर चुनौतियों का जो संयोजन भारत में दीखता है, वह कहीं मिलता। इन चुनौतियों जूझते हुए ऊंचाई तक जाना ही भारतीय मैनेजरों  को दूसरे अलग बनत है। किताब में आईआईटी का उदहारण देकर बताया गया है की भारतीय कितने चुनौती से भरे माहौल में आगे बढ़ते हैं। इस संस्थान में  वाले महज 2% छात्रों को ही एडमिशन मिल पाता है। 
सत्या नडेला 
इसके अलावा यह किताब इतिहास में भी ले जाती है और बताती है की उस दौर में भी भारतीय मैनेजरों का वर्चस्वा रहा है। जैसे 1959 में जेएम लाल पहले भारतीय थे, जिन्हे आईसीआई यूके का सीईओ बनाया गया था। 1961 में यूनिलीवर ने प्रकाश टंडन को हिंदुस्तान लिवर लिमिटेड का चेयरमैन बनाया था।

आसानी से घुल - मिल जाना भी भारतीय मैनेजरों की बड़ी खूबी है 
आसानी से घुल - मिल जाना भी भारतीय मैनेजरों की बड़ी खूबी है
भारतीय मैनेजरों की सफलता की पड़ताल करते हुए किताब बताती है की इसकी चार बड़ी वजह है। अंग्रेजी के साथ तालमेल, बड़ी प्रतिस्पर्धा वाले माहौल में टीके रहना, आसानी से घुल - जाना और कड़ी मेहनत तो भारतीय  में ही शुमार है, पूरी दुनिया इस बात को मान चुकी है यह गुजरात के व्यपारियों का उदहारण दिया गया है। जिन्होंने एंटवर्प हीरे का 70% बाजार अपने  रखा है।

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बड़ी कम्पनियां ई-मेल का जवाब नहीं देती थीं तो हाथ से लिखे पत्र भेज कर दिया बिजनेस ऑफर, आज सात हजार करोड़ रुपए का कारोबार चलाते हैं


बीएमडब्ल्यू, लॉरियल, उबर जैसी कंपनिया लेती हैं सेलोनिस की सर्विस
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एलेक्जेंडर 
इंटरनेट और ई-मेल के जमाने में हाथ से लिखे पत्रों का चलन काफी कम हो गया है। खासकर व्यावसाइक जगत में इसका उपयोग न के बराबर होता है। लेकिन, जर्मनी की टेक्नॉलजी कंपनी सेलोनिस की सफलता के पीछे हाथ से लिखे पत्रों का बड़ा योगदान रहा रहा। 2011 में म्यूनिख में 22 साल के एलेक्ज़ेंडर रिंकें ने अपने दो दोस्तों मार्टिन क्लेंक व बास्तियन के साथ सेलोनिस नाम की कंपनी खोली। यह हाई टेक डेटा माइनिंंग आधारित स्टार्ट - अप था जो कंपनियों को सॉफ्टवयेर और आर्टिफिशियल इंटिलिजेंस की मदद से बिजनेस और कर्मचारियों के परफॉर्मेंस मॉनिटर करने, उनमे मौजूदा खामियों का पता लगाने और उपयुक्त समाधान सुझाने का काम करता था। क्लिक करके पूरा पढ़े... 
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Aslam Faruki

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