2200 महिलाओं को हस्तकला से जोड़कर रोजगार दिलाया, फैशन जगत में बाड़मेर को विश्व स्तर पर मिल रही पहचान।
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रूमा देवी राजस्थान के बाड़मेर की एक भारतीय पारंपरिक हस्तशिल्प कारीगर हैं। रूमा देवी को भारत में महिलाओं के लिए सर्वोच्च नागरिक सम्मान "नारी शक्ति पुरस्कार 2018" प्राप्त हुआ। जन्म: 1988 (उम्र 32 वर्ष) इंडियन फैशन डिजाइनर ऑफ बाड़मेर |
बाड़मेर जिले के रावतसर गाँव में एक गरीब किसान परिवार में मेरा जन्म हुआ। हम सात बहनें थीं मैं जब चार वर्ष की हुई तो मां चल बसी। पिताजी ने दूसरी शादी कर ली और मुझे चाचा के पास छोड़ दिया। मैं आठवीं क्लास में पहुंची तो चाचा -चाची ने पढ़ाई छुड़वाकर घर के काम में लगा दिया। दादी मां कसीदाकारी करती थी, इसलिए मैं भी यह काम बखूबी सिख गई। घर के साथ ही मुझे 10 किमी दूर से बैलगाड़ी में पानी लाना पड़ता था। 17 वर्ष की उम्र में ही मेरी शादी कर दी गई। दो वर्ष बाद बच्चा हुआ लेकिन 48 घंटे बाद उसकी मौत हो गई। वह कमजोर था और इलाज कराने के लिए हमारे पास पैसे नहीं थे। मैं तो यह कहूँगी कि पैसे हमारे पास कभी रहे ही नहीं। बच्चे की मौत ने मुझे झकझोर दिया था। मैंने तय कर लिया कि चूल्हे - चौके में जिंदगी खपाने, ऐसी मजदूरी करने के बजाय दो पैसे कमाने वाला कोई काम करना चाहिए।
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रूमा देवी को भारत में महिलाओं के लिए सर्वोच्च नागरिक सम्मान "नारी शक्ति पुरस्कार 2018" प्राप्त हुआ।
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समझ नहीं आ रहा था की शुरुआत कहां से करूँ? मैंने एक पुरानी सिलाई मशीन खरीदी और छोटे - मोटे बैग बनाने लगी। मटेरियल लाती, फिर बैग बनाकर दुकानों पर सप्लाय करने जाती थी। घर के काम के साथ बैग बनाने के लिए अकेली ही संघर्ष करती रही। कुछ महीनों बाद बैग की मांग बढ़ने लगी तो मैंने मोहल्ले की अन्य महिलाओं को अपने साथ जोड़ना शुरू कर दिया। इन्हें जब दो पैसे मिलने लगे तो वे मन से काम करने लगीं।
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फैशन -शो में रूमा देवी |
काम बढ़ा तो 2008 में मैंने 10 महिलाओं के साथ दिप देवल महिला स्वयं सहायता समूह का गठन किया। मेरे पास इतने पैसे नहीं थे की ज्यादा मटेरियल खरीद सकूँ। इधर - उधर से उधार लेकर बैग बनाती और उधर चूका देती थी। यह सिलसिला कई महीने तक चला। हमारे एरिया में ग्रामिण विकास चेतना संस्थान का कार्यालय है। मैं वहां गई और हस्तशिल्प के लिए सहयोग मांगा। इस पर वहां के के अध्यक्ष ने कुछ सैंपल बनाकर दिखाने को कहा। मैंने अन्य महिलाओं के साथ कई दिनों तक सैंपल तैयार किए। जब उन्हें यकीन हो गया कि हम अच्छा काम कर सकती हैं तो हमें पहला ऑर्डर दिलाया।
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महिलाओं को कसीदाकारी की बारीकी समझाते हुए रूमा देवी। |
मैंने तय समय पर उसे पूरा किया। हमने बहुत अच्छा काम किया था, इसलिय हमारे उत्पाद की तारीफ होने लगी। और महिलाओं को अपने साथ जोड़ने के लिए मैं कच्ची बस्ती की महिलाओं को हस्तकला सिखाने लगी। दो वर्ष में 2010 तक मैंने करीब 1500 महिलाओं को हस्तकला के कई पैटर्न सीखाकर अपनी संस्था से जोड़ा। मेरा व्यवहार देख सभी महिलाओं ने मुझे अपना अध्यक्ष चुन लिया। जिम्मेदारी बढ़ गई थी, मुझे रोजाना 10 से 12 घंटे काम करना पड़ता था। चूंकी शहर में मेरा काम हो चुका था, इसलिय मैं गावों में जाने लगी। गांव - गांव, ढाढ़ी - ढाढ़ी पहुंचकर वहां की महिलाओं को हस्तकला के लिए प्रेरित करने लगी। शुरू में कोई साथ नहीं आया, लेकिन बाद में लोग जुड़ने लगे।
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अन्य महिलाओं के साथ काम करती हुई रुमा देवी |
अपनी कला के सीलसिले में मुझे पहली बार फैशन-शो देखने दिल्ली जाने का मौका मिला। वहां पता चला की हम लोग कितने पीछे हैं। तब बाड़मेर की हस्तकला को कोई जानता नहीं था। अपने हुनर को पहचान दिलाने के लिए मैंने कॉटन की साड़ियों के साथ अन्य कपड़ों पर कसीदाकारी करना शुरू किया। हेरिटेज वीक में पहली बार फैशन - शो करने जयपुर पहुंची। वहां जितने भी नामचीन फैशन डिजाइनर थे, सभी से मिली, लेकिन उन्होंने नीगेटिव रिस्पांस दिया। वे बोले - यह काम आपके लेवल का नहीं है। उनके जवाब ने मेरे अंदर जिद भर दी। मैंने एक महीने में अपने नए प्रोडक्ट तैयार किए फिर बाड़मेर फैशन लिबास में अपना फैशन - शो किया। हमने घूंघट में वॉक किया। तो लोगों की तालिया रूक नहीं रही थी।
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रैंप वाक करती हुई रूमा देवी |
यह मेरी पहली सफलता थी इसके बाद मुझे राजस्थान स्थापना दिवस पर जयपुर में हुए मेगा -शो में प्रदर्शन का मौका मिला। उस कार्यक्रम को 112 देशों में लाइव दिखाया गया था। मैंने व मेरी अन्य सहयोगियों ने खुद की बनाई, कसीदा की हुई पारम्परिक, रंग बिरंगी वेशभूषा में जब रैंप वॉक किया तो लोग देखते रह गए। राजस्थानी वेशभूषा को इस रूप में विदेश में पहली बार देखा जा रहा था। इसका फायदा यह हुआ कि मुझे कई फैशन डिजाइनरों से ऑर्डर मिलने लगे। इस बिच जर्मनी के टेक्स्टाइल शो में जाने का मौका मिला तो मुझे यकीन नहीं हो रहा था। जिसने आठवीं की पढ़ाई बिच में छोड़ दी हो, वह विदेश जा रही थी। मेरी बरी आई तो मैं सुई - धागा लेकर अपना हुनर हुनर दिखाने लगी। मेरी कसीदाकारी देखकर विदेशी डिजाइनर अचंभित रह गए।
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कौन बनेगा करोड़पति में रुमा देवी अमिताभ बच्चन और सोनाक्षी सिन्हा के साथ |
2017 में दिल्ली फेयर रनवे-शो में बाड़मेर क्राफ्ट से तैयार स्टाइलिश परिधानों में हमने प्रस्तुति दी। अपने काम की बदौलत मुझे सरकार व विदेश से ढेर सारे अवार्ड मिल चुके है। लोग कहते है मैंने बाड़मेर की कला को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई है। लंदन, जर्मनी, सिंगापूर और कोलंबो में हुए फैशन वीक में भी अपने उत्पादों का प्रदर्शन कर चुकी हुं। हस्तशिल्प कला में नवाचार के साथ फैशन को शामिल करने के लिए कुछ दिन पहले ही राष्ट्रपति ने मुझे नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया था। अभी एक वर्ष में 10 फैशन-शो कर चुकी हूं।
आज मेरे संस्थान से 22 हजार महिलाएं जुड़कर रोजगार पा रही हैं।
इतना ही कहना चाहूंगी चाहे पढ़-लिख नहीं पाई, लेकिन कुछ पाने की जिद ने मुझे सफल बनाया।
अपने विचारों पर पूरा भरोसा रखिए भले दुनिया कहती रहे : आप गलत हैं
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